एक रोटी का टुकड़ा जब इज्जत के वदले प़ता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे, मुझे एक नया साल दिख जाता है
एक दशक मे कितने वदले ,नर नग्न पुरुष नाना वदले
इस नग्न संस्कृति की खातिर, जब कानून नया लिख जाता है
..... सच पूछो कि दोस्त मेरे
हाय! वासना क्या कहना , अर्ध नग्न सामाजिक है गहना
भाई के हाथो को छूते, भय भीत घरो मे रहती बहिना
अस्तित्व हमारा पूछ राहा इस देश मे मुझे कब तक रहना
टीवी के चित्रों मे धुधले जब द्रश्य कोई दिख जाता है
....... सच पूछो कि दोस्त मेरे
भूखा भाई महानगरो की सड़को पर दिख जाता है
मासूम उदासी मुख मंडल मजबूर कोई दिख जाता है
नया साल क्या हाल बुरा है, भूखे बच्चा-बच्ची रहो मे
कोई अर्ध नग्न फूल लिए दिख जाता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे.......................
पिजा की रोटी की कीमत, ज़ब ढावे की रोटी के साग आयेगा
माया राहुल जैसी चक्र सुरक्षा, भारत का जन जन पायेगा
सच पूछो कि दोस्त मेरे.......................
कोला पेपासी ये जल धारा, जब टाके शेर विक जाएगा
संसद के उस सभा कक्ष मे, कोई मजदूर,किसान जन हित का प्रश्न उठायेगा
ये कवि स्वाजनो सहित मिल, नव वर्ष उसी दिन मनायेगा
एक रोटी का टुकड़ा जब इज्जत के वदले प़ता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे, मुझे एक नया साल दिख जाता है @
कवि काछिवांत
हरदयाल कुशवाहा
३१/१२/२००९
सच पूछो कि दोस्त मेरे, मुझे एक नया साल दिख जाता है
एक दशक मे कितने वदले ,नर नग्न पुरुष नाना वदले
इस नग्न संस्कृति की खातिर, जब कानून नया लिख जाता है
..... सच पूछो कि दोस्त मेरे
हाय! वासना क्या कहना , अर्ध नग्न सामाजिक है गहना
भाई के हाथो को छूते, भय भीत घरो मे रहती बहिना
अस्तित्व हमारा पूछ राहा इस देश मे मुझे कब तक रहना
टीवी के चित्रों मे धुधले जब द्रश्य कोई दिख जाता है
....... सच पूछो कि दोस्त मेरे
भूखा भाई महानगरो की सड़को पर दिख जाता है
मासूम उदासी मुख मंडल मजबूर कोई दिख जाता है
नया साल क्या हाल बुरा है, भूखे बच्चा-बच्ची रहो मे
कोई अर्ध नग्न फूल लिए दिख जाता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे.......................
पिजा की रोटी की कीमत, ज़ब ढावे की रोटी के साग आयेगा
माया राहुल जैसी चक्र सुरक्षा, भारत का जन जन पायेगा
सच पूछो कि दोस्त मेरे.......................
कोला पेपासी ये जल धारा, जब टाके शेर विक जाएगा
संसद के उस सभा कक्ष मे, कोई मजदूर,किसान जन हित का प्रश्न उठायेगा
ये कवि स्वाजनो सहित मिल, नव वर्ष उसी दिन मनायेगा
एक रोटी का टुकड़ा जब इज्जत के वदले प़ता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे, मुझे एक नया साल दिख जाता है @
कवि काछिवांत
हरदयाल कुशवाहा
३१/१२/२००९
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