नर्मदा संबंधी एक उपाख्यान है, जिसमें
      गंधर्वों और नागों के संघर्ष का वर्णन
      है । पहले गंधर्वों ने मुनि कश्यप के
      छ: लाख पुत्रों को लेकर नागों को
      पराजित किया था और उनके मूल्यवान्
      रत्न छीनकर उनके राज्य को अपने अधिकार
      में कर लिया था । बाद में नागों ने नर्मदा
      से पुरुकुत्स की सहायता लेने के
      लिए कहा, इस कारण नर्मदा पुरुकुत्स
      को लेकर पाताल गयी और पुरुकुत्स
      ने गंधर्वों का संहार किया । इस पर
      नागों ने नर्मदा को आशीर्वाद दिया
      कि 'जो कोई नर्मदा का स्मरण करेगा,
      उसे सर्पों से भय नहीं रहेगा ।' यह
      उपाख्यान चाहे ऐतिहासिक हो और नर्मदा
      के माध्यम से गंधर्व और नाग जातियों
      के संबंधों पर प्रकाश डालता हो, चाहे
      कल्पित हो और नर्मदा की महिमा स्थापित
      करने के लिए लिखा गया हो, लेकिन
      इतना निश्चित है कि इस कथा से एक लोकविश्वास
      का जन्म हो गया । लोगों का विश्वास
      है कि प्रात: और रात्रि में नर्मदा मैया
      को नमस्कार करने और यह प्रार्थना
      करने से कि 'हे नर्मदा ! मुझे सर्पों
      के विष से बचाओ', सर्पों का विष व्याप्त
      नहीं होता । होता यह है कि कथा
      विस्मृत हो जाती है, विश्वास अमर
      रहता है 
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