गिरि गहर नद - निर्झर मय लता
गुल्म तरु कुंज भूमि है,
तपोभूमि साहित्य कलायुत
वीर भूमि बुंदेल भूमि है ।
एक
समय था, जब बुंदेलखंड का विस्तृत
प्रदेश एक शासन-सूत्र में बंध कर उत्तर
में यमुना से लेकर दक्षिण में नर्मदा
तक और पश्चिम में चम्बल से लोकर
पूर्व में टां... तक फैला हुआ था, किंतु
इन नदियों द्वारा घिरे हुए भाग में सीमांत
की ओर के क्षेत्र बघेली गोंडा, जयपुरी,
मालवी, निमाड़ी, छत्तीसगढ़ी और गोंडी
बोलियों का दबाव प्रभाव वाले हैं
। बुंदेली बोली की दृष्टि से जो भाग
वास्तविक बुंदेलखंड है, उसका आज कुछ
भाग उत्तर-प्रदेश और शेष मध्यप्रदेश के
कुछ भागां में विस्तार पाये हैं । इस
प्रकार झांसी, हमीरपुर, बांदा, जालौन,
सरीला, ग्वालियर, ईसागढ़, विदिशा,
भोपाल, टीकमगढ़, छत्तरपुर, पन्ना, चरखारी,
समथर, दतिया, विजावर, अ्जयगढ़ तथा
सागर, दमोह, जबलपुर और होशंगाबाद
इसमें सम्मिलित किये जाते हैं। सवनी
का कुछ भाग भी इसके अंतर्गत लिया जाता
है। राजनितिक सीमाओं की दृष्टि से
विभिन्न ऐतिहासिक युगों में राज्यों
के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को लेकर
विभिन्न दिशाओं में बढ़ाया-घटाया जा
सकता है।
पुराकाल
से अब तक बुंदेलखंड अनेक शासकों के
अधीन रहा है इसलिए उसके नाम समय-समय
पर बदलते रहे हैं - जैसे - पुराणकाल
मे यह "चेदि' जनपद के नाम से अभिहित
हुआ है तो साथ-साथ इसको दस नदियों
वाला "दशार्ण' प्रदेश भी कहा गया
है। विन्धय पर्वत की श्रेणियों से आवेष्टित
होने के कारण इसे "विंधयभूमि'
या "विंधय निलय', "विंधय पार्श्व'
आदि संज्ञाऐं भी मिलती हैं। "चेदि' का
दूसरा नाम "डाहल' माना जाता है
दशार्ण और "चेदि' अलग-अलग जनपद भी
हैं। चेदी और त्रिपुरी का सम्बंध भी
महत्वपूर्ण माना जाता है। बुंदेलखंड
की दक्षिणी सीमा रेवा (नर्मदा) के द्वारा
बनती है इसलिऐ इसे "रेवा का उत्तर
प्रदेश' भी माना जाता है। बुंदेलखंड
में पुलिन्द जाति और शबरों का अनेक
समय तक निवास रहा है इसलिए कतिपय
विद्वान इसे "पुलिन्द प्रदेश' अथवा
"शबर-क्षेत्र' भी घोषित करते हैं।
बुंदेलखंड
राजनैतिक इतिहास में दसवीं शताब्दी
के बाद ही अपनी संज्ञा को सार्थक करता
है। चंदेली शासन मे यह क्षेत्र "जुझौती'
के नाम से जाना जाता था किन्तु जव पंचम्
सिंह बुंदेल के वंशजों ने पृथ्वीराज
के खंगार सामन्त को कुण्डार में परास्त
किया और इस प्रदेश पर अधिकार जमाया,
इस भूमि का नाम बुंदेलखंड पड़ा ।
पंचम
सिंह यूं तो स्वयं गहरवार थे । वे
बुंदेला कब हुं, इस संबंध में अनेक
विंवदन्तियाँ हैं । कतिपय विद्वानों का
मत है कि यह शब्द विंध्यवासिनी देवी
से संबंधित है । पंचम सिंह ने विंध्यवासिनी
देवी की आराधना की थी । विंध्यवासिनी
देवी का मंदिर विंध्य पर्वत श्रेणियों
पर स्थित है, इसलिए कहा जाता है कि
पंचम सिंह ने अ्पने नाम के साथ "विंध्येला'
जोड़ लिया था । यह विंध्येला शब्द
ही बाद में "बुंदेला' रुप में विकसित
हो गया और जिस क्षेत्र में पंचम
सिंह अथवा उसके वंशजों ने राज्य
विस्तार वह बुंदेलखंड कहलाया । टाड
के अनुसार ""जसौंदा
नामक गरहवार ने विंध्यवासिनी
देवी के सम्मुख एक महायज्ञ करके अपने
वंशजो को "बुंदेला' प्रसिद्ध किया
और इससे बुंदेलखंड बना ।''
बुंदेलखंड के विभिन्न खंड एक लम्बे
समय तक भिन्न-भिन्न शासकों के बंधन
मे रहे इसलिए विभिन्न भागों के बुंदेलखंडियों
में एकता के बीच किंचित विधिता का आभास
मिलता है, फिर भी बुंदेलखंड के
विभिन्न भाग मिला कर अपनी प्राकृतिक
रचना, जलवायु और भाषा तथा
साहित्य रीति-नीति और लोक-व्यवहार
मे ऐसा खंड है, जिसका एक विशेष अपनापन
है।
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