विकास की कलई खोलते बुंदेलखंड के आदिवासी
बुंदेलखंड की धरती कई मायने में बेहद अहम रही है लेकिन आज यह इलाक़ा बदहाली और पिछड़ेपन की मिसाल बन गया है.
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ऐतिहासिक शख़्सियतों ने बुंदेलखंड की धरती पर जन्म लिया.टीकमगढ़ ज़िला मुख्यालय से सिर्फ़ आठ किलोमीटर के फ़ासले पर बसे आदिवासी गांव कांटी जाने के बाद प्रदेश के चौतरफ़ा विकास के तमाम दावे खोखले नज़र आने लगते हैं. 24 साल के मोहन आठवीं तक पढ़ाई करने के बाद ग़रीबी के कारण पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो गए.
बीबीसी से बातचीत के दौरान मोहन कहते हैं कि उनके पास कोई काम नहीं है. सरकार ने भी कुछ नहीं किया. उनके पास ग़रीबी की पहचान करने वाली बीपीएल कार्ड भी नहीं है. कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि पंचायत सचिव ने एक हज़ार रुपए की रिश्वत मांगी जो ज़ाहिर है उनके पास नहीं थे जिसे देकर वो अपना बीपीएल कार्ड बनवा सकें.
कोई परियोजना नहीं
टीकमगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र अधवर्यु कहते हैं कि बुंदेलखंड का विकास न तो दिग्विजय सिंह के दस साल के कार्यकाल में हुआ और न शिवराज सिंह के समय में हुआ. उनके अनुसार इन इलाक़ों में न कोई सिंचाई परियोजना शुरू हुई, न कोई उद्योग आया, न कोई बिजली संयंत्र लगा.
राजेंद्र अधवर्यु कहते हैं कि बुंदेलखंड के पूरे इलाके में कृषि प्रधान ज़िले हैं लेकिन कोई एग्रोइंडस्ट्री यहां पर नहीं लगाई गई.
टीकमगढ़ के जाने-माने वकील मानवेंद्र सिंह कहते हैं कि भौगोलिक संरचना के कारण आवागमन की दिक़्क़तें, सामंती मानसिकता और आज़ादी के बाद चुने गए जनप्रतिनिधियों में विकास को लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, ये तीन इस इलाक़े के पिछड़ेपन के प्रमुख कारण हैं.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 2009 में बुंदेलखंड के विकास के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार से विशेष पैकेज की मंज़ूरी के लिए गुहार लगाई थी जिसे सरकार ने फ़ौरन स्वीकार करते हुए दोनों राज्यों के बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिए लगभग सात हज़ार करोड़ के विशेष पैकेज की घोषणा कर दी.
क़ाग़ज़ पर योजनाएं
भ्रष्टाचार की बात तो एडवोकेट मानवेंद्र भी स्वीकार करते हैं लेकिन यहां के लोगों पर भी हमला करते हुए मानवेंद्र सिंह कहते हैं, "यहां की जनता में आगे बढ़ने की ललक में कहीं न कहीं कमी रही. जो है जैसा है उसे पाकर संतुष्ट रहना यहां के जनमानस की आदत बन गई है."
मानवेंद्र सिंह कहते हैं कि बुंदेलखंड विशेष पैकेज से यहां का विकास संभव नहीं है, जब तक की यहां कोई स्थायी रोज़गार न दिए जाए और जब तक बुनियादी ढांचा तैयार न हो. यहां बेहतरीन क़िस्म का खनिज पाया जाता है जिनका दोहन बाहर के लोग कर रहे हैं लेकिन बुंदेलखंड का जनमानस उसका उपयोग नहीं कर पाया.
चार साल पहले राहुल गांधी ने यहां की ग़रीबी, यहां का पलायन और यहां की भूखमरी को देखने के बाद इन इलाक़ों के लिए विशेष पैकेज की मांग की थी. राजेंद्र अधवर्यु कहते हैं कि विशेष पैकेज का लाभ बुंदेलखंड के लोगों को नहीं मिल सका.
अलग-अलग लोगों की राय अलग हो सकती है लेकिन इलाक़े का दौरा करने के बाद इसमें शायद कोई शक नहीं कि शिवराज सिंह चौहान के विकास के दावों की सारी क़लई बुंदेलखंड में खुल जाती है.
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