बुन्देलखंड का हर निवासी बुन्देला है


बुन्देलखंड में महाराजा छत्रसाल की शासन सत्ता इस प्रकार थी :–


इस जमना उत नर्मदा,इस चम्बल उत टौंस ।

छत्रसाल सौं लरन की,रही न काहू हौंस ।।







मंगलवार, 22 जुलाई 2014

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में उद्योग धधों का टोटा,आय का प्रमुख स्रोत खनिज सम्पदा इमारती पत्थर है

पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण जनता की मांग नहीं बल्कि उनकी जिद है
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पिछले कुछ समय से जब से मैं बुन्देलखण्ड को अच्छी तरह से जानने लगी हूँ ! तो मुझे ऐसा लगता है कि जो अभी तक प्रथक बुन्देलखण्ड की मांग थी अब वो बुन्देलखण्ड वासियों की जिद बन गई है !
बुन्देलखण्ड भूमि देश की आजादी के 64 वर्षों के बाद भी विकास की किरणों से वंचित है ! आज भी यह क्षेत्र भुखमरी, गरीबी, कर्ज, अशिक्षा, बेकारी और अज्ञानता के अभाव में भारत के सबसे अधिक पिछड़े क्षेत्रों में से एक है ! बुन्देलखण्ड को दो भागों में बांट कर रखा गया है: 1) मध्य प्रदेश 2) उत्तर प्रदेश !
5 करोड़ की लगभग आबादी वाला यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र , दो लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल और 70,000किलोमीटर में फैला लम्बा-चौड़ा क्षेत्र , केवल एक ही राज्य के रूप में होना चाहिये !
बुन्देलखण्ड की जनता ही इस क्षेत्र की समस्त परिस्थितियो को निकट से जानती है ! जब तक वो खुद इस मुहिम में विपरीत परिस्थितियो के खिलाब आवाज नहीं उठाएगी तब तक उनकी विकट परिस्थितियो में विकास की रोशनी नहीं आ सकती ! उपरोक्त राज्यों में विकासमयी वातावरण को देखकर बुन्देखण्ड की आम जनता के द्वारा यह अनुभव करना स्वाभाविक है कि भारत जैसे महान देश के सबसे बड़े दो प्रदेशों के बीच लम्बे अरसे से कठिनाइयों से जूझते आ रहे इस क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के लिये एक पृथक बुन्देलखण्ड राज्य का बनना ही एक मात्र हल है !
1857 की क्रान्ति की अनुगूँज में जिस वीरांगना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वह झांसी में क्रान्ति का नेतृत्व करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हैं ! बुन्देलखण्ड रानीलक्ष्मी बाई की शौर्यगाथा उनके अदम्य साहस व फौलादी संकल्प से पहचानी जाती है ! लेकिन पिछले समय से प्रथक बुन्देलखण्ड की मांग में महिलाओं की भूमिका कम रही है ! उस रिक्त स्थान को पूरा करने के लिए  2008 में हवन संस्था के संस्थापक साधू सुनील मैसी द्वारा प्रथक बुन्देलखण्ड हेतु राज्य निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढाने के लिए वीरांगना बुन्देल खण्ड रेजीमेंट का निर्माण किया गया था ! जो आज भी सक्रिय रूप से महिलाओं में बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के प्रति जागरूकता लाने का काम कर रहा है ! यदि बुन्देलखण्ड राज्य का निर्माण होता है तो प्रथक बुन्देलखण्ड की अलख जगाने वाले संघर्षशील संगठनों के लिए स्वर्गीय शंकर लाल मल्होत्रा का रुतवा प्रथक बुन्देलखण्ड की मांग के लिए संघर्षशील संगठनों के बीच बुन्देलखण्ड राज्य पिता से कम नहीं होगा !
देख जाये तो बुन्देलखण्ड पृथक राज्य के विकास के लिये जिन आवश्यक संसाधनों की जरूरत है वो इस क्षेत्र में भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं जैसे– कि चूना, यूरेनियम, ग्रेनाइट , गोरा पत्थर, तांबा, हीरा , जिप्सम आदि खनिज सम्पदा ! विधुत उत्पादन के लिये नदी जल  शक्ति की अनन्त सम्भावनाएं इस क्षेत्र में हैं वन संपदा और लकड़ी,टिम्बर का उधोग भी अनन्त भण्डार के रूप में प्रबल हैं ! जो कि अब तक उनका उपभोग मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की सरकारें कर रही हैं !
देखा जाए तो आजादी के पूर्व से ही पृथक राज्य निर्माण के लिये यहां की जनता की मांग रही है ! इस क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों से इसकी मांग भी समय-समय पर की जाती रही है ! परन्तु देश के नेताओं ने इसे कभी जरूरी नहीं समझा ! यहां के लोग मजदूर बनकर देश के अन्य प्रदेशों में जगह-जगह दर-दर की ठोकरें खा रहे है जब कि यहीं पर समस्त सम्भावनाएं होते हुये भी केन्द्र व राज्य सरकारों ने कोई भी लघु उधोग और रोजगार के कोई साधन आदि विकसित नहीं किये ! देश की चंदेरी नाम से पहचाने जाने वाले वस्त्र शिल्प सर्वश्रेष्ठ साड़ियो को पूरी दुनिया में जाना जाता है ! लेकिन इसके प्रोत्साहन के लिये आज तक कोइ सुनिश्चित योजना नही बनाई  गयी ! हलांकि1955 में गठित 3 सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष सुविख्यात विचारक श्री पणिक्कर की रिपोर्ट   ( कि यह क्षेत्र  हृदये स्थल, ”बुन्देलखण्ड राज्य” के रूप में जिन्दा रह पायेगा ) के सार्वजनिक होने पर बुन्देलखण्ड राज्य बनाने  के वायदे खूब किये गये परन्तु कोइ निष्कर्ष नहीं निकला ! उल्टे  तब से अब तक हमारी दिल्ली की सरकार यहां की जनता की मांग को अनदेखा करती रही है !  दिल्ली की सरकार को यहाँ की जनता की विकट परिस्थितियां दिखाई नहीं देती ! दिल्ली सरकार आँख बंद करके बैठी हुई है ! अंतत: अब हाल ये है कि पृथक प्रदेश व प्रशासन के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के लिये आज भी बुन्देलखण्ड वासी तरस रहे हैं !
दिल्ली सरकार को ये सोचना चाहिए ! कि बुन्देलखण्ड के लोगों को अपनी क्षेत्रीय भाषा (बोली) स्थानीय सांस्कृतिक पहचान और अपनी ऊंची परम्पराओं व सम्मान के सहारे अपना विकास करने की छूट क्यों नहीं दी जा रही है ! क्यों नहीं उनेह एक अलग राज्य बना कर दिया जा रहा है ! स्थितियो के स्पष्टीकरण के साथ कई बातें साफ तौर पर दिखाई दे रही हैं !
इन स्थितियो से सभी परिचित होते हुये भी दिल्ली सरकार कानों में ऊँगली डाल कर क्यों बैठी है ! इस पहलू को देखते हुये प्रथम रूप से बुन्देलखण्ड प्रदेश को मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश से अलग करके पृथक राज्य बनाने की मांग कोई स्थानीय राजनीति या संकीर्ण विचारधारा से ग्रसित नहीं है ! ये मांग जनता की भलाई और बुन्देलखण्ड के विकास को देखते हुये ठोस व यथार्थ तर्कों पर आधारित होने के साथ-साथ राष्ट्रहित में है ! यह सोचना बुन्देलखण्ड की जनता , केन्द्र सरकार और राज्य सरकार का कर्तव्य है ! वर्तमान में बुन्देलखंड क्षेत्र की स्तिथि बहुत ही गंभीर है ! यह क्षेत्र पर्याप्त आर्थिक संसाधनों से परिपूर्ण है किन्तु फिर भी यह अत्यंत पिछड़ा है  ! इसका मुख्य कारण है राजनीतिक उदासीनता ! न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें इस क्षेत्र के विकास के लिए गंभीर हैं ! किसी ने भी इस क्षेत्र के व्यापक विकास की चर्चा तक करना पसंद नहीं किया है ! यह इस क्षेत्र का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यदि कोई आवाज पुरजोर ढंग से उठी भी है तो उसे किसी न किसी रूप में दबा दिया गया है, यह कुत्सित प्रयास भले ही सरकारी स्तर पर हुआ हो अथवा संगठनों की आपसी कलह से ! यदि हम निरपेक्ष रूप से विचार करें तो हमें साफ तौर पर दिखाई देता है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के साथ हमेशा से भेदभाव वाली स्थिति ही रही है ! कुछ पिछले समय की ही बात ले लीजिए जनपद जालौन में एक मेडीकल कॉलेज बन कर तैयार हुआ किन्तु वह भी दो राजनैतिक दलों की आपसी रंजिश का शिकार होकर सिर्फ और सिर्फ इमारत बन कर अपनी मासूमियत पर रो रहा है ! ये तो सिर्फ एक ही उदाहरण है ! ऐसे एक नहीं कई उदाहरण है जिनको देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि केन्द्र सरकार द्वारा बुन्देलखण्ड के प्रति किस प्रकार का सौतेला व्यवहार और पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाया जाता रहा है ! अब यहां की जनता इस बात को अच्छी तरह समझने लगी है ! मध्य प्रदेश सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार और  केन्द्र सरकार द्वारा यहां की जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है ! इसलिये बुन्देलखण्ड राज्य बनाने के लिये उनका गुस्सा भड़कना स्वाभाविक  है ! और ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारें इससे अंजान हैं ! इस संघर्ष के लिये इससे पहले भी बहुत प्रयास किये जाते रहे हैं किसी न किसी कारणवश धीमे और खत्म होते हुये भले लगते हों परन्तु बुन्देलखण्ड राज्य के एकीकरण व प्रदेश बनने के मार्ग को बुन्देलखण्ड की  जनता पुन: आन्दोलन कर मजबूत बना लेगी ! इस क्षेत्र के लोग जानते हैं कि केवल पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण ही बुन्देलखण्ड को विकास दिला सकता है !
मेरा मानना ये है कि जब तक राज्य का निर्माण नहीं हो रहा है ! तब तक सरकार से इस क्षेत्र का आधारभूत ढांचा मजबूत किये जाने हेतु आन्दोलन चलाया जाये ! इस क्षेत्र में विश्वविद्यालय, मेडीकल-इंजीनियरिंग कॉलेज, पावर प्लांट, सड़क, पानी आदि की व्यवस्था सरकारी प्रयासों से करवाने हेतु आन्दोलनों की गति तीव्र की जाये ताकि राज्य का निर्माण होने के बाद एकाएक इन सबके निर्माण हेतु नवनिर्मित राज्य के कोष पर बोझ न पड़े ! बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण हेतु संकल्पित लोगों को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है साथ ही आवश्यकता है इस क्षेत्र की जनता को बुन्देलखण्ड राज्य बनने के बाद के लाभों को समझाने की  स्पष्ट रूप से समझना होगा कि बिना इस क्षेत्र की जनता के जागरूक हुए, आन्दोलन में सशक्तता से शामिल हुए बिना बुन्देलखण्ड का निर्माण सम्भव ही नहीं है !
देखा जाये तो इस पूरे विवरण में महिलाओं का आगे आना बहुत ही आवश्यक है ! हमारे भारत देश में वीरांगनाओं की कमी नहीं है ! क्रान्ति की ज्वाला सिर्फ पुरुषों को ही नहीं आकृष्ट करती बल्कि वीरांगनाओं को भी उसी आवेग से आकृष्ट करती है ! भारत में सदैव से नारी को श्रद्धा की देवी माना गया है ! पर यही नारी जरूरत पड़ने पर चंडी बनने से परहेज नहीं करती ! वीरांगनाओं के बिना प्रथक बुन्देलखण्ड की मांग की कभी पूरी नहीं हो सकती है !

प्रस्तावित बुन्देलखण्ड राज्य की तस्वीर
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(१)उत्तर-प्रदेश के समिमलित जिले  -
हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन, बांदा, चित्रकूट
(२) मध्य प्रदेश के समिमलित जिले      -
छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर, दतिया।
मध्य प्रदेश के आंशिक जिले :——       -
सतना-चित्रकूट विधान सभा क्षेत्र, भिण्ड-लहार विधान सभा क्षेत्र , गुना-चन्देरी विधान सभा क्षेत्र, शिवपुरी-पिछोर विधान सभा क्षेत्र, नरसिंहपुर की गाडरवारा तहसील, शिओपुर, अशोक नगर बिदिशा सांची व गंज बासौदा,जबलपुर की कटनी तहसील, ग्वालियर
क्षेत्रफल  -      2 लाख वर्ग किलोमीटर लगभग।
राजधानी        -      झांसी
विधान सभाएं    -      56 विधान सभा क्षेत्र (संभावित)
लोक सभाएं     -      11 लोक सभा क्षेत्र (संथावित)
जन संख्या      -      5 करोड़ लगभग
पर्यटक स्थल    -      खजुराहो, कालिंजर, गढ़कुण्डार, महोबा, झांसी, चरखारी, पांडवफाल, पन्ना आदि !
तीर्थ स्थल      -      चित्रकूट, मैहर, पीताम्बरा पीठ, दतिया, वालाजी उनाव, ओरछा, देवगढ़, द्रोणागिरि,नैनागिरि, व्यास पीठ कालपी, सोनागिरि।
नदियां -      यमुना , चम्बल, वेतवा,  सिन्ध, धसान, काली, केन आदि !
खनिज सम्पदा   -      ग्रेनाइट, संग मरमर, यूरेनियम, हीरा, सोना, गौरा पत्थर, कोयला, अभ्रक आदि !
वन सम्पदा     -      शीशम, सागौन , चन्दन, महुआ, आम, आदि !
राजस्व आय –(संभावित आंकड़े)   -      लगभग 16 हजार करोड़ रूपये वार्षिक !
खर्च –(संभावित आंकड़े) -      लगभग 1500 करोड़ रूपये वार्षिक !
शेष राशि (संभावित आंकड़े)      -
लगभग 14500 करोड़ रूपये वार्षिक। (गैर बुन्देलखण्ड क्षेत्र को हर वर्ष चला जाता है)
 

ललितपुर ब्यूरो :उत्तर प्रदेश में बुन्देलखण्ड की हालत वैसे ही दयनीय है। इस क्षेत्र में उद्योग धधों का टोटा है। यहाँ की प्रमुख आय का स्रोत खनिज सम्पदा ही है। बुन्देलखण्ड के अति पिछड़ा जिला ललितपुर है। यहाँ पर इमारती पत्थर बहुतायत में निकलता है, जिससे छोटे ठेकेदारों व मजदूरों की आजीविका भी चलती है। हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा पत्थरों की छोटी खदानों पर भी माइनिंग प्लान लागू कर दिया गया है, जिससे इस क्षेत्र के विकास को अवरूद्ध होने का हवाला देते हुये सोमवार को पत्थर उद्योग व्यापारी संघ ने प्रदेश शासन के भू-तत्व एवं खनिज विभाग के प्रमुख सचिव को एक ज्ञापन जिलाधिकारी ओ.पी. वर्मा के द्वारा भेजा है।




ज्ञापन में बताया कि सैकड़ों वर्षो से जनपद में छोटे-छोटे खनिज पट्टे किये जा रहे है। माइनिंग क्षेत्र के मद्देनजर यहा 2, 3 या फिर अधिकतम 5 से 10 एकड़ तक के सीमित पट्टों से इमारती पत्थर (सेण्ड स्टोन), खण्डा, बोल्डर आदि निकला जाता है एवं इन क्षेत्रों की सफाई कराते हुये मशीनों के बजाय कारीगरों से पत्थरों की कटाई करायी जाती है, जिससे उनको भी रोजगार के साधन मुहैया है। प्रदेश सरकार द्वारा ऐसे छोटे पट्टों पर भी माइनिंग प्लान को सख्ती से लागू करने व एनओसी (स्वच्छता प्रमाण-पत्र) लेने को भी बाध्य किया जा रहा है, जो कि पाँच हेक्टेयर के ऊपर बड़ी खदानों में ली जाती है। बताया कि इस प्रकार के आदेश लागू होने से बालू, रेता, बोल्डर आदि के पट्टे बंद कर दिये गये है। इससे ठेकेदारों व मजदूरों को अकारण ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।



 पत्थर व्यापारियों ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर नदी तल से निकाले जाने वाले मिनरल पर पर्यावरण की एनओसी आदेश निर्गत करता रहा है, लेकिन इन आदेशों को इमारती पत्थर से भी जोड़ा जा रहा है, जबकि इमारती पत्थर का नदी से कोई सरोकार नहीं है। व्यापारियों ने प्रदेश सरकार को रेता, बालू व नदी तलों की उपजों को अलग रखते हुये नई नीति बनाये जाने की माँग की है। उन्होंने 5 हेक्टेयर की अनिवार्यता समाप्त कर पूर्व क्षेत्रों को ही दोबारा नवीनीकरण व नवीन पट्टे आवंटन करने के आदेश पारित करने की माँग की। पत्र में पत्थर परिवहन में प्रपत्र 11 को लेकर समस्याओं को भी व्यापारियों ने उठाया। पत्थर व्यापारियों ने प्रमुख सचिव से इन तमाम समस्याओं के शीघ्र निस्तारण की माँग की है। ज्ञापन पर अध्यक्ष दिनेश कुमार शर्मा, संजीव कुमार सुड़ेले, उत्तम सिंह चौहान, राजेश मिश्रा, अशोक कपूर, रामेश्वर प्रसाद मिश्रा, लक्ष्मी देवी, अशोक सिंघई, सुदामा मिश्रा, अखिलेश कुमार, देवेन्द्र कुमार, श्याम सुंदर कटारे, हरीश खन्ना, परशुराम शर्मा, मुकेश शर्मा, संजीव कुमार, राजबहादुर सिंह, सतगुरू प्रसाद, अवध बिहारी, दिनेश कुमार, अवध बिहारी, उमेश कुमार, आदित्य नारायण बबेले, उमाकान्त शर्मा, बलन कुमार, अजय पटैरिया, रमेश चन्द्र, भगवत नारायण श्रोती आदि मौजूद रहे।

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